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रस-मीमांसा

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इस-मीमांसा वाणी का अनुकरण बड़ी सफाई से करते हैं और अच्छे कवि कहलाते हैं। पर सूक्ष्म और मार्मिक दृष्टि उनकी रचना में हृदय की निश्चेष्टता का पता लगा लेती हैं। किसी काल में जो सैकड़ों कवि प्रसिद्ध होते हैं उनमें सच्चे कवि-ऐसे कवि जिनकी तीव्र अनुभूति ही वास्तव में कल्पना को अनुकूल रूप-विधान में तत्पर करती है-दस पाँच ही होते हैं। ‘प्रत्यक्ष' से हमारा अभिप्राय केवल चाक्षुष ज्ञान से नहीं है। रूप शब्द के भीतर शब्द, गंध, रस और स्पर्श भी समझ लेना चाहिए । वस्तु-व्यापार-वर्णन के अंतर्गत ये विषय भी रहा करते हैं। फूलों और पक्षियों के मनोहर आकार और रंग का ही वर्णन कवि नहीं करते ; उनकी सुगंध, कोमलता और मधुर स्वर का भी वे बराबर वर्णन करते हैं। जिन लेखकों या कवियों की ब्राण-शक्ति तीव्र होती है वे ऐसे स्थलों की गंधात्मक विशेषता का वर्णन कर जाते हैं जहाँ की गंध-विशेष का थोड़ा बहुत अनुभव तो बहुत से लोग करते हैं पर उसकी ओर स्पष्ट ध्यान नहीं देते। खलियानों और रेलवे स्टेशनों पर जाने से भिन्न भिन्न प्रकार की गंध का अनुभव होता है। पुराने कवियों ने तुरंत की जोती हुई भूमि से उठी हुई सोंधी महँक का, हिरनों के द्वारा चरी हुई दूब की ताजी गमक का उल्लेख किया है। फरासीसी उपन्यासकार जोला की गंधानुभूति बड़ी सूक्ष्म थी । उसने योरप के कई नगरों और स्थान की गंध की पहचान बताई है। इसी प्रकार बहुत से शब्दों का अनुभव भी बहुत सूक्ष्म होता है। रात्रि में, विशेषतः वर्ष की रात्रि में, झींगुरों और झिल्लियों के फंकार-मिश्रित सीत्कार का बँधा तार सुनकर लड़क १ [ मैघदूत, पूर्वमेघ, १६ । ]