पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/२९४

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स्मृत रूप-विधान २८१ दशा की विपरीतता की भावना लिए हुए जिस प्रत्यभिज्ञान का उदय होता है। उसमें करुण वृत्ति के संचालनकी बड़ी गहरी शक्ति होती है, कवि और वक्ता बराबर उसका उपयोग करते हैं। जब हम किसी ऐसी बस्ती, ग्राम या घर के खंडहर को देखते है जिसमें किसी समय हमने बहुत चहल-पहल या सुखसमृद्धि देखी थी तब यह वही है' की भावना हमारे हृदय को एक अनिर्वचनीय करुण स्रोत में मग्न करती हैं। अँगरेजी के परम भावुक कवि गोल्डस्मिथ ने प्रत्यभिज्ञान का एक अत्यंत मार्मिक -स्वरूप दिखाने के लिये ‘ऊजड़ गाम' की रचना की थी। स्मृत्योभास कल्पना | अब तक हमने रसात्मक स्मरण और रसात्सक प्रत्यभिज्ञान को विशुद्ध रूप में देखा है अर्थात ऐसी बातों के स्मरण का विचार किया है जो पहले कभी हमारे सामने हो चुकी हैं। अब हम उस कल्पना को लेते हैं जो स्मृति या प्रत्यभिज्ञान का सा रूप धारण करके प्रवृत्त होती है। इस प्रकार की स्मृति या प्रत्यभिज्ञान में ‘पहले देखी हुई वस्तुओं या बातों के स्थान पर या तो पहले सुनी या पढ़ी हुई बातें हुआ करती हैं अथवा अनुमान द्वारा पूर्णतया निश्चित । बुद्धि और वाणी के प्रसार द्वारा मनुष्य का ज्ञान प्रत्यक्ष बोध तक ही परिमित नहीं रहता, बर्तमान के आगे पीछे भी जाता है। आगे आनेवाली बातों से यहाँ प्रयोजन नहीं ; प्रयोजन है अतीत से । अतीत की कल्पना भावुकों में स्मृति की सी सज़ीवता प्राप्त करती है और कभी कभी अतीत का कोई बचा हुआ चिह्न पाकर प्रत्यभिज्ञान का सा रूप ग्रहण करती है। ऐसी कल्पना के विशेष मार्मिक प्रभाव का कारण यह है कि यह सत्य का अाधार लेकर खड़ी होती है। इसका आधार या तो आप्त शब्द ( इतिहास ) होता है अथवा शुद्ध अनुमान ।