पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/३१०

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ছবি -বিধান ૨૧ कर नायिका ने उस घड़ी को खुले भाग्यवाली कहा, इससे सौभाग्यदुशा एक व्यक्ति ही तक न रहकर उस घड़ी के भीतर संपूर्ण जगत् में व्याप्त प्रतीत हुई। विशेषण के इस विपर्यय से कितनी व्यंजकता आ गई ! ( ३ ) मेघ का छाना और उघड़ना तो बराबर बोला जाता है, पर कवि ने मेघ के छाए रहने और श्रीकृष्ण के आँखों में छाए रहने के साथ ही साथ जग का उघड़ना ( खुलना, तितर-बितर होना या तिरोहित होना ) कह दिया जिसका लक्ष्यार्थ हुआ जगत् के फैले हुए प्रपंच का अस्त्रों के सामने से हट जाना, चारों ओर शून्य दिखाई पड़ना। (४) कृष्ण की अमिलताई ( न मिलना ) हृदय के घाव में भी भर गई है जिससे उसका मुंह नहीं मिलता और वह नहीं पूजता। भरा भी रहना और न भरना या पूजना में विरोध का चमत्कार भी है । ( ५ ) हम कभी कभी आत्म-विस्मृत हो जाती हैं. इससे ज्ञान पड़ता है कि आप हमें लिए दिए भूलते हैं अर्थात उधर आप हमें भूलते हैं, इधर हमारी सत्ता ही तिरोहित हो जाती है। (६) • हमारी आँखों में उजाड़ बसा है अर्थात् आँखों के सामने शून्य दिखाई पड़ता है । इसमें भी विरोध का चमत्कार अत्यंत आकर्षक है। आजकल हमारी वर्तमान काव्यधारा की प्रवृत्ति इसी प्रकार की लाक्षणिक वक्रता की ओर विशेष है। यह अच्छा लक्षण हैं। इसके द्वारा हमारी भाषा की अभिव्यंजना-शक्ति के प्रसार की बहुत कुछ आशा है। श्री सुमित्रानंदन पंत की रचना से कुछ उदाहरण लेकर देखिए ( १ ) धुलि की देरी में अनजान । छिपे हैं मेरे मधुमय गान । (२) रुदन, क्रीड़ा, आलिंगन । . शशि की सी ये कलित कलाएँ :किलक रही हैं पुर पुर में।