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रस-मीमांसा

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३१० रस-मीमांसा विवेचन द्वारा कोई वर्ग या जाति ठहराना, बहुत सी बातों को लेकर कोई सामान्य सिद्धांत प्रतिपादित करना, यह सब तर्क और विज्ञान का काम है--निश्चयात्मिका बुद्धि का व्यवसाय है। काव्य का काम है कल्पना में 'बिंब' (Images) या मूर्त भावना उपस्थित करना; बुद्धि के सामने कोई विचार ( Concept ) लाना नहीं । 'बिंब' जब होगा तब विशेष या व्यक्ति का ही होगा, सामान्य या जाति का नहीं ।* | इस सिद्धांत का तात्पर्य यह है कि शुद्ध काव्य की शक्ति सामान्य तथ्य-कथन या सिद्धांत के रूप में नहीं होती। कविता वस्तुओं और व्यापारों का बिंव-ग्रहण कराने का प्रयत्न करती हैं; अर्थग्रहण मात्र से उसका काम नहीं चलता । बिंब-ग्रहण जब होगा तव विशेष या व्यक्ति का ही होगा, सामान्य या जाति का नहीं । जैसे, यदि कहा जाय कि 'क्रोध में मनुष्य बावला हो जाता है, तो यह काव्य की उक्ति न होगी। काव्य की उक्ति तो किसी क्रुद्ध मनुष्य के उग्र वचनों और उन्मत्त चेष्टाओं को कल्पना में उपस्थित भर कर देगी। कल्पना में जो कुछ उपस्थित | * अभिब्पंजना-वाद ( Expressionism) के प्रवर्तक कोसे ( Benedetto Croce ) ने कला के बोधपई और तर्क के घोधपक्ष को इस प्रकार अलग अलग दिखाया हैं-( क ) Intuitive knowledge, knowledge obtained through the imagination, knowledge of the individual or of individual things (c) Logical knowledge, knowledge obtained through the intellect, knowledge of the universal, knowledge of the relations between individual things. ---Aesthetics' by Benedetto Croce.