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रस-मीमांसा

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३२० रस-मीमांसा यह उस प्रवृत्ति का इद के बाहर पहुँचा रूप है जिसका आरंभ योरप में एक प्रकार से पुनरुत्थान-काल ( Renaissance) के साथ ही हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि उस काल के पहले काव्य की रचना काल को अखंड, अनंत और भेदातीत मानकर तथा लोक को एक सामान्य सत्ता समझकर की जाती थी। रचना करनेवाले यह ध्यान रखकर नहीं लिखते थे कि इस काल के आगे आनेवाला काल कुछ और प्रकार का होगा अथवा इस वर्तमान काल का स्वरूप सर्वत्र एक ही नहीं है-- किसी जन-समूह के बीच पूर्ण सभ्य काल है, किसी के बीच उससे कुछ कम ; किसी जन-समुदाय के बीच कुछ असभ्य काल • है, किसी के बीच उससे बहुत अधिक । इसी प्रकार उन्हें इस बात की ओर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं होती थी कि लोक भिन्न भिन्न व्यक्तियों से बना होता है जो भिन्न भिन्न रुचि और प्रवृत्ति के होते हैं। ‘पुनरुत्थान-काल से धीरे धीरे इस तथ्य की ओर ध्यान बढ़ाता गया, प्राचीनों की भूल प्रकट होती गई। अंत में इशारे पर आँख मूंदकर दौड़नेवाले बड़े बड़े पंडितों ने पुनरुत्थान की कालधारा को मथकर व्यक्तिवाद poetic atmosphere became that of the supreme palace of wonder-Bedlam. Bailey, Dobell and Sinith were not Bedlamites, but men of common sense. They only affected madness. The country from which the followers of Shelley sing to our lower world was named 'Nowhere." --Poetry and the Renascence of Wonder' by Theodore Watts-Dunton,