पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/३३८

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प्रस्तुत रूप-विधाम ३२५ और नवीन मर्यादावाद (New Classicism ) मुख्य हैं। इनमें से अभिव्यंजनावाद' का कुछ परिचय मैं 'काव्य में रहस्यवाद्' नाम की पुस्तक में दे चुका हूँ। पिछले चार वाद् बिल्कुल हाल के हैं। जार्ज-काल की प्रवृत्ति का निचोड़ है 'प्रकृति का फिर आश्रय लेना'२। गत योरपीय महायुद्ध के दो तीन वर्ष पहले रुपर्ट ब्रुक (Rupert Brooke ) प्रकृति की और बड़ी झोंक से बढ़े और उसे बड़े प्रेम से अपनाया। प्रकृति के चिर-परिचित सादे और सामान्य दृश्यों के माधुर्य ने उनके मन में घर कर लिया था। दृश्यावलि की चमक-दमक, तड़क-भड़क, भव्यता, विशालता की ओर जिस प्रकार उनका मन नहीं जाता था उसी प्रकार वचनवक्रता, भाषा की ऐंठ और उछल-कूद, कल्पना की उड़ान की ओर उनकी प्रवृत्ति नहीं थी। उनमें थी प्रकृति के चिर-परिचित रूपों की ओर बालकों की सी ललक और उमंग । उन्होंने प्रकृति के गंभीरपन की ओर उतना ध्यान न दिया, उनकी वाणी में उतना गुरुत्व न था, पर भाव की सचाई अवश्य थी। उन्होंने सामान्य घरेलू जीवन और उसमें काम आनेवाली वस्तुओं को बड़े प्यार की दृष्टि से देखा था । सन् १९१५ में उनका देहांत हो गया। ठीक उन्हीं के पथ के पथिक हेराल्ड मोनरो ( Harold Monro ) हैं जिनकी एक कविता हैं “बिल्ली के पीने का दूध” । प्रकृति की ओर लौटनेवालों में डि० ला० मेयर ( Walter De La Mare) १ [ देखिए चिंतामणि, दूसरा भाग, काव्य में रहस्यवाद', • पृष्ठ १०४ सै ।] । ३ [ मिलाइए चिंतामणि, दूसरा माग, पृष्ठ २४६ से। ]