पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/३८०

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शब्द-शक्ति काव्य का लक्ष्य–अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष की प्राप्ति सुख से, अल्प बुद्धिवालों को भी । परिपक्व बुद्धिवाले फिर काव्यानुशीलन क्यों करे ? धर्म के लिये वेद-शास्त्र का ही अनुशीलन क्यों न करे ? मीठी दुवा से यदि काम हो तो कड़वी क्यों करें ? काव्य का लक्षण ( १ ) काव्यप्रकाश-दोपरहित, गुणसहित और अलंकृत, कभी कभी अनलंकृत भी शब्द तथा अर्थ को काव्य कहते हैं । लक्षण सदोप–दोष काव्य को केवल परिमित करता है, उसके तत्त्व का तिरस्कार नहीं। अनेक सोप पद्य उत्तम काव्य में परिगणित होते हैं, जैसे ‘न्यछारो ह्ययमेव'3 इति । स्वयं लक्षण१[ चतुर्वर्गफलप्राप्तिः सुखाल्पधियामपि । काव्यादेव यतस्तेन तस्वरूपं निरूप्यते ||-साहित्यदर्पण १।२ । ] २ [ तददोषौ शब्दार्थों सगुणाबनलंकृती पुनः कापि । | काव्यप्रकाश १, सुत्र १ ।] ३ [न्यारो ह्ययमेव में यदरयस्तत्राप्यसौ तापसः सोऽप्यत्रैव निहन्ति राक्षसकुलं जीवत्यही रावणः ।