पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/३८६

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शब्द-शक्ति लक्षणा मुख्यार्थ का बाध होने पर ( देखिए ‘योग्यता’ ) रूढ़ि के कारण या किसी प्रयोजन के लिये मुख्यार्थ से संबद्ध अन्य अर्थ का ज्ञान जिस शक्ति के द्वारा होता है वह लक्षणा है। अन्य अर्थ के वोध के कारण -अन्वयानुपपत्ति (अन्वय का अभाव ) और मुख्यार्थ से लक्ष्यार्थ का संबंध । इसलिये अन्य का तात्पर्य एकदम असंबद्ध नहीं है, क्योंकि उपादान-लक्षणा में लक्ष्यार्थ के साथ मुख्यार्थ भी लगा रहता है । लक्षण के लिये तीन शतें होती हैं-( १ ) मुख्यार्थ का वाध, (२) मुख्यार्थ का लक्ष्यार्थ से संबंध, (३) रूढ़ि या प्रयोजन । ये तीनों लक्षणा के हेतु हैं। ‘पंजाब बीर है' और 'गाँव पानी [गंगा] में बसा है ये क्रमशः रूढ़ि और प्रयोजन के उदाहरण हैं। दूसरे उदाहरण में लक्षणा का प्रयोजन है शैत्य और पावनत्व । ये दोनों व्यंग्य हैं। लक्षणा का हेतु सदा या तो कोई प्रयोजन होता है या कोई रूढ़ि। विशेष | ‘बाध’ पद का अर्थ ठीक ठीक समझ लेना चाहिए । यों तो इसका तात्पर्य योग्यता का अभाव ( उक्ति की पदावली में तर्कसिद्ध संबंध का अभाव ) है, किंतु विशेष परिस्थिति में इस पद से कथन की अनुपपत्ति का अभाब भी समझना चाहिए ( चाहे वह तर्क से ठीक ही क्यों न हो)। यह बात निम्नलिखित उदाहरण से बहुत स्पष्ट हैं-'आपने बड़ा उपकार किया' इत्यादि । इसमें वाक्यगत लक्षणा कही जाती है। मेरे मत से यहाँ वाक्यगत लक्षणा नहीं, व्यंजना है। यह उदाहरण लक्षणा का उदाहरण हो सकता है, यदि इस वाक्य के पहले आपने मेरा घर ले लिया इत्यादि कहा जाय।