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रस-मीमांसा

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रस भामांसा काव्यप्रकाश में दिए रूढ़ि के उदाहरण का खंडन उदाहरण है-“कर्म में कुशल' । मम्मट ‘कुशल का व्युत्पत्तिनिमित्त' अर्थ बतलाते हैं और उसे वाच्यार्थ या मुल्यार्थ मानते हैं। पर इस प्रसंग में जिस अर्थ का विचार होना चाहिए वह लोकस्वीकृत अर्थात् ‘प्रवृत्तिनिमित्त ही ठहरता है। यदि ऐसा न होगा तो कोई गो' पद् में भी लक्षणा मान सकता है ( गौ=जो चले ) ।। | लक्षणा दो प्रकार की होती है। उपादान-लक्षण और लक्षणलक्षण । उपादान-लक्षणा–वाक्यार्थ में अंगरूप से अन्वित मुख्यार्थ जहाँ अन्य अर्थ का आक्षेप कराता है वहाँ मुख्यार्थ के भी बने रहने के कार उपादान-लक्ष कहलाती है। ( इसे अजहत्स्वार्थीवृत्ति भी कहते हैं ) जैसे–चैत दौड़ा, भाले घुसते हैं। उदाहरण रूढ़ि में उपादान-लक्षणा–काले ने काटा। प्रयोजन में ,, ,, = लाल पगड़ी आई, सब भागे । दूसरे उदाहरण में व्यंग्य प्रयोजन है आतंकातिशय ।। विशेष उपादान-लक्षणा में हमें यह भली भाँति समझ लेना चाहिए कि 'अंगरूप से अन्वित' का तात्पर्य क्या है। अर्थ अर्थात् उस पदार्थ या वस्तु का अन्वय होता है जो पद के द्वारा कही जाती है, उस पद का नहीं । उदाहरण के लिये-‘लाल पगड़ी पदार्थ ‘लाल पगड़ीवाले सिपाही पदार्थ में अंगरूप से उपस्थित १ [ ‘कर्मणि कुशल:'-काव्यप्रकाश, पृष्ठ ४२ । ] २ [ मिलाइए साहित्यपण, द्वितीय परिच्छेद ।]