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रस-मीमांसा

का कथन शब्दों द्वारा न होगा केवल दोनों व्यक्तियों के द्वारा मन ही मन समझ लिया जायगा तब क्या लक्षणा होगी?
लक्षणा के अन्य भेद

सारोपा और साध्यवसाना―ये साम्य (आरोप और अध्यवसान) पर आश्रित हैं।

आरोप―उपमेय का उपमान के साथ इस प्रकार अभेद कथन कि उपमेय भी बना रहे, निगीर्ण या आच्छादित न हो। उदाहरणार्थ―‘यह बालक सिंह है’।

अध्यवसान―उपमेय को हटाकर अभेद् ज्ञान द्वारा उपमान को उपस्थित करना। जैसे, ‘एक सिंह मैदान में आया’। जिसमें आरोप हो वह सारोपा और जिसमें अध्यवसान हो वह साध्यवसाना लक्षण हैं।
उदाहरण

रूढ़ि में सारोपा उपादान-लक्षण―( ‘अश्वः श्वेतो धावति, यह उदाहरण हिंदी में न चल सकेगा। ) जैसे ‘गदड़साई’। इस अर्थ में उक्त पद का व्यवहार ‘रूढ़ि’ है। लक्ष्यार्थ में ‘गूदड़’ का वाच्यार्थ भी गृहीत है। इसलिये उपादान है। ‘साई’ पर मुख्यार्थ (अनि गीर्ण स्वरूप) का बिना त्याग किए ‘गूदड़’ का आरोप हैं। इसलिये सारोपा है।

प्रयोजन में सारोपा उपादान-लक्षण―‘यह आम गूदा ही गूदा है’। (‘एते कुन्ताः प्रविशन्ति’ हिंदी में अच्छा उदाहरण न होगा)।

रूढ़ि में सारोपा लक्षण-लक्षणा―‘अरब लोग लड़ाके थे’। (अरब=अरब देशवासी)। अरब शब्द अरब के निवासियों का उपलक्षण है। ‘अरब’ [ देश ] और ‘लोग’ [ देशवासी ] का अभेद होने से सारोपा है।