पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/३९२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

शब्द-शक्ति रूढ़ि में सारोपा गौणी लक्षण-लक्षणा--‘गाँजेंद्र कंटक को राजा निकाल रहा है। कंटक' शब्द सादृश्य द्वारा कष्टदायी तुच्छ शत्रु' का उपलक्षण है; कंटक प्राय: शत्रु के अर्थ में प्रयुक्त होता है। प्रयोजन में सारोपा गौणी लक्षण-लक्षणा–‘बह आदमी चैल है; वह गऊ आदमी हैं। | रूढ़ि में गोणी साध्यवसाना उपादान-लक्षणा-कत्थड़ गूदड़ सोते हैं, दुशालेवाले रोते हैं। प्रयोजन में गौणी साध्यवसाना उपादान-लक्षणा–‘एक हड्डी की ठठरी सामने आकर खड़ी हुई। | रूढ़ि में गौणी साध्यवसाना लक्षण-लक्षणा–‘कंटक दृर करो। प्रयोजन में गौणी साध्यबसाना लक्षण-लक्षणा---एक बैल के मुंह क्या लगते हो। प्रयोजनवती लक्षणा के अन्य भेद-गृढ़ और अगृढ़ व्यंग्य के अनुसार प्रयोजनवती लक्षणा के गूढ़ और अगूढ़ दो भेद होते हैं । से मिलते-जुलते अन्य कुमार जा रहे हैं। कहनेवाला कहता है कि 'ये राजकुमार जा रहे हैं। इससे यहाँ पर जो लोग राजकुमार नहीं हैं वे भी राजकुमार कहे जा रहे हैं। सादृश्य के कारण ही में राजकुमार कहे गए हैं। उन पर राजकुमार होने का आरोप 'ये' ( एते ) शब्द से है। उनका राजकुमारों के समान मान्य होना प्रयोजन है। यहाँ ‘राजकुमार' शब्द का मुख्यार्थ तो 'राजा का कुमार है, पर उसका लक्ष्यार्थ 'राजकुमार-सदृश अन्य कुमार है। इस लक्ष्यार्थ में मुख्यार्थ 'राजकुमार' का भी उपादान है। इसी से उपादान-लक्षणा है। शुक्लजी का कहना है कि राजकुमाराः पद ही लाक्षणिक है, 'एते ( ये ) नहीं । वस्तुतः 'ते' आरोप को बतलाता है। इसलिये 'एते राजकुमाराः सन का सब लाक्षणिक है।]