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रस-मीमांसा

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रस-मीमांसा ‘आपने बड़ा उपकार किया' इत्यादि ‘गढ़' का उदाहरण है। जगह कोतवाली सिखाती हैं ‘अगढ़' का उदाहरण है। क्योंकि ‘सिखाती है' का लक्ष्यार्थ ‘सरलता से समझ में आ जाती है। है ।। प्रयोजनबती के अन्य भेद-धर्मगत और धर्मात । यदि व्यंग्य-प्रयोजन फलवती १ लक्षणा में धर्मी से संबद्ध होता है तो धर्मिगत लक्षणा होती है, जैसे, “मैं कठोर-हृद्य विशेष आवश्यक नहीं 'राम' हूँ सब कुछ सह लूंगा । यह राम' शब्द का मुख्याथै अनुपयुक्त है । लक्षणा से यहाँ इसका अर्थ ‘दुःख-सहनशील होता है। यहाँ ‘म’ ( धर्मी) की अतिशयता व्यंग्य है। पानी में घर बसा है उदाहरण में शैत्य ( धर्म ) की अतिशयता व्यंग्य है अत: लक्षणा धर्मगत है । उपसंहार| लक्षणा के अनेक प्रकार के भेदों का निरूपण विभिन्न दृष्टियों से किया गया है जो परस्पर स्वच्छंद हैं । उनके मिश्रण से इसके ६० • भेद हो सकते हैं। मुख्य भेद ये हैं ( १ ) रूढ़ा और प्रयोज़नवती । (२) उपादान और लक्षण-लक्षणा । (३) सारोपा और साध्यवसाना । (४) गौणी और शुद्धा ।। | व्यंजना | व्यंजना शक्ति ऐसे अर्थ को बतलाती है जो अभिधा, लक्षणा या तात्पर्यवृत्ति द्वारा उपलब्ध नहीं होता। व्यंजना व्यापार का नाम ध्वनन, गमन और प्रत्यायन भी है। यह शक्ति या तो शब्द, अर्थ और प्रत्ययगत होता है या उपसर्गगत । ( ‘दुफ्तर १ [ प्रयोजनवती ।