पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/३९६

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शब्द-शक्ति ३८३ ( प्रकरण ), देश, काल, काकु, चेष्टा इत्यादि के द्वारा व्यंजित अर्थ का बोध होती है। उदाहरण (१) वक्ता, वाक्य, प्रकरण, देश और कान द्वारा-शरद् ऋतु आ गई, रास्तों का पानी सूख गया। लंका यहाँ से थोड़ी ही दूर है, वानरों का दल भी एकत्र हो गया, अब हुम लोग कहाँ बैठे हैं । यहाँ व्यंजित अर्थ है-आक्रमण करो। (२) बोधव्य की विशेषता द्वारा-चंदन छूट गया है,अंजन नहीं रह गया है, शरीर भी पुलकित है, हे फूठी दूती, तू वापी स्नान करने गई थी, उस अधम (नायक) के पास नहीं गई थी। विपरीत लक्षणा के द्वारा 'तू अवश्य गई थी—अर्थ निकलता है। दृती की अवस्था से यह अर्थ व्यंजित होता है कि नायक के साथ उसने संभोग किया है। (३) अन्यसंनिधि की विशेपता द्वारा-देखो इस कुंज के सामने बनमृग कैसे खिलौने की तरह निश्चल बैठे हैं। (यहाँ नायिका स्थान की निर्जनता की व्यंजना करती हुई संकेतस्थल की भी व्यंजना करती है।) (४) काकु से-ऐसे समय में भी वह न आबेगा ? ('अवश्य आवेगा-व्यंग्य ।) ३ [ निःशेषच्युतचन्दनं स्तनतट निर्मुष्टरागोऽधरो नेत्रे दूरमनञ्जने पुलकिता तन्वी तवेयं तनुः । मिथ्यावादिनि दूति बान्धवजनत्याज्ञातपीडागमे वाप स्नातुमितों गतासिन पुनस्तस्याधमत्यान्तिकम् ।। साहित्यदर्पण, पृष्ठ ५६ । ]