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रस-मीमांसा

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३८४ रस-मीमांसा (५) चेष्टा से--‘गुरुजनों के बीच नायिका ने नायक की ओर भाव से देख लीलाकमल का मुख बंद कर दिया । । । (‘संकेत का समय संध्या है—यह अर्थ व्यंग्य है )। अर्थमूलक व्यंजना के तीन उपभेद होते हैं—( १ ) वाच्यार्थ में, (२) लक्ष्यार्थ में और (३) व्यंग्यार्थ में। इनके उदाहरण क्रमशः ऊपर (१), (२) और ( ३ ) में दिए जा चुके हैं। विचार--- यह बात ध्यान में रखने की है कि ‘लक्ष्यार्थ' में 'लक्ष्यार्थ और अभिधेयार्थ' में 'अभिधेयार्थ' नहीं होता, किंतु 'व्यंग्यार्थ' में दूसरा व्यंग्य हो सकता है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि अभिधा और लदाणा का शव्द से सीधा और निकट का संबंध है, पर व्यंजना को उससे संबंध अप्रत्यक्ष है, अर्थात् अभिधेयार्थ के द्वारा शब्द से उसका संबंध होता है, क्योंकि नियम है-शब्दबुद्धिकर्मणां विरम्य व्यापाराभावः ।। आपत्ति–वाच्यार्थं ज्ञात हो जाने पर हम लक्ष्यार्थ तक पहुँचते हैं, फिर यह कैसे कहा जा सकता है कि लक्ष्यार्थी का शब्द या पद से प्रत्यक्ष संबंध है। समाधान-लक्ष्यार्थं वाच्यार्थ का रूपांतर मात्र होता है। और व्यंग्या पृथक् अर्थ होता है। | ( १ ) प्रश्न–क्या तीसरा भेद् व्यंग्य में व्यंग्य' नियम के विरुद्ध नहीं है, क्योंकि शब्द का अर्थ बोध कराने में वही वृत्ति एक बार अर्थ का बोध कराने के अनंतर अपना व्यापार समाप्त कर देती हैं। फिर से उस शब्द का अर्थ १ [ संकेतकालमनसे विटं ज्ञात्वा विदग्धया ! हसनेत्रपिताकूतं लीलापझं निमीलितम् ।। –साहित्यदर्पण, पृष्ठ ५८ ।]