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शब्द-शक्ति

बताने में उसका उपयोग नहीं होता—(शब्दबुद्धिकर्मणां विरम्य व्यापाराभावः)।

उत्तर—नहीं। क्योंकि यह नियम शब्द के लिये है, अर्थ के लिये नहीं।

तात्पर्य वृत्ति

तात्पर्य वृत्ति वह वृत्ति है जो प्रत्येक शब्द के संकेतित अर्थों के समन्वय द्वारा पूरे वाक्य का संगत अर्थ प्रस्तुत करती है।

अभिधा शक्ति के एक एक पदार्थ को अलग अलग बोधन करके विरत हो जाने पर उन अलग अलग पदार्थों को परस्पर संबद्ध करके समूचे वाक्य का अर्थ बोधन करनेवाली वृत्ति तात्पर्य वृत्ति है।

तात्पर्य वृत्ति को मानने न मानने की दृष्टि से दो संप्रदाय हो गए हैं। जो इस वृत्ति को स्वीकृत करता है उसका नाम 'अभिहितान्वयवादी' है। इनका मत है कि वाक्य का प्रत्येक पद् पृथक् रूप से स्वच्छंद अर्थात् अनन्वित अर्थ का बोध कराता है। इसके अनंतर सब अर्थों का समन्वय होकर वाक्यार्थ अर्थात् समूचे वाक्य के अर्थ की उपलब्धि होती है। पुराने नैयायिक, मीमांसक (जैसे कुमारिल भट्ट) तथा और बहुत से लोग अर्थात् अधिकांश शास्त्राभ्यासी इस मत को मानते हैं। आलंकारिकों (साहित्यिकों) का भी यही मत है। किंतु अन्विताभिधानवादी[१] तात्पर्य वृत्ति को नहीं मानते। उनका मत है कि वाक्य का प्रत्येक शब्द अन्वित अर्थ का ही बोध कराता है। इसलिये अभिधेयार्थ के अनंतर किसी और अन्वय की आवश्यकता नहीं रह जाती।



  1. [यह मत कुमारिल भट्ट के शिष्य प्रभाकर तथा उनके अनुयायियों का है और 'गुरुमत' कहलाता है।]

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