पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/४०१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
३८८
रस-मीमांसा

________________

३८८ रस-मीमांसा पहले उदाहरण ( क ) में ‘भरा हुआ' वस्तुतः ‘सूखा हुआ' के अर्थ में हैं। इसी प्रकार दूसरे उदाहरण ( ख ) में निषेध बिना किसी खींचतान के विधि का बोध कराता है। ‘भगतजी आदि उदाहरण ऐसा नहीं करता। उसमें निषेध की प्रतीति प्रकरणादि के पर्यालोचन के बाद होती है। इसलिये उसमें लक्षणा नहीं है। नियम यह है कि जिस वाक्य में पदार्थों का संबंध अनुपपन्न होता है। उसी में लक्षण होती हैं। जहाँ पदों के मुख्य अर्थ का अन्वय हो जाने के उपरांत अवसर या प्रसंग के विचार से बाध की प्रतीति होती है वहाँ लक्षणा नहीं हो सकती ।। अभिधामूलक या विवक्षितवाच्य ध्वनि-इसके दो प्रकार होते हैं-असंलक्ष्यक्रम व्यंग्य और संलक्ष्यक्रम व्यंग्य । (क) असंलक्ष्यक्रम व्यंग्य-रस, भाव, रसाभास, भावाभास इसके उदाहरण हैं। सूचना-इससे रसों और भावों की असंख्यता प्रकट होती है। लेखक [ साहित्यदर्पणकार ]ने चुंबन-आलिंगनादि को भी इसी के अंतर्गत रखा है। किंतु विभाव और अनुभाव सदा वाच्य होते हैं व्यंग्य नहीं । केबल स्थायीं और संचारी [ भाव ] व्यंग्य हो सकते हैं। (ख) संलक्ष्यक्रम व्यंग्य ध्वनि-के तीन प्रकार होते हैं—(१) शब्दशक्त्युद्भव ध्वनि, (२) अर्थशक्युद्भव ध्वनि और (३) उभय शक्युद्भव ध्वनि।। (१) शब्दशतयुद्भव ध्वनि के दो प्रकार हैं-वस्तु-रूप और अलंकार-रूप ।। ( क ) बस्तु-रूप-उदाहरण—(स्वयंदूती-वचन-पथिक, इन