पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/४०२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

शब्द-शक्ति ३८९ उठे हुए पयोधरों को देखकर यदि ठहरना चाहते हो तो ठहर जाव' ) ( पयोधर= मेघ और स्तन )। व्यंग्य वस्तु है यहाँ ठहरो और सहवास का सुख लूटो ।। प्रश्न–क्या इस उक्ति में रसाभास व्यंग्य नहीं है। स्वयंदूती के कथन में ( प्रथम अध्याय २) विश्वनाथ ने रसाभास माना है। हम लोगों के सामने जो उदाहरण है उसमें श्लिष्ट ‘पयोधर' शब्द केवल वस्तु व्यंजित करता है । अब प्रश्न यह है कि क्या व्यंजना इसके आगे भी जाती है। समाधान–हाँ, निश्चय ही ! और इस प्रकार व्यंग्यार्थ में अर्थमूलक व्यंजना का उदाहरण प्रस्तुत करती है। देखिए पृष्ठ ३८४ । इसलिये यह माना जाता है कि व्यंजना शक्ति के द्वारा एक के बाद् एक वस्तुओं और भावों की माला की माला व्यंजित हो सकती है। जैसे अनुभव के द्वारा संचारी भाव व्यंजित हो सकता है और तदुपरांत संचारी के द्वारा स्थायी भाव । ठीक इसी प्रकार व्यंग्य वस्तु के द्वारा व्यंग्य भाव या रस व्यंजित हो सकता है। ( ख ) शब्द-शक्ति से अलंकार व्यंग्य-लेप के द्वारा सादृश्य (उपमा) की व्यंजना इसका उदाहरण होगा । (अन्योक्तिकल्पद्रुम के पद्य उदाहरण में दिए जा सकते हैं । ) (२) अर्थशतयुद्भव ध्वनि—वह या तो वस्तु के रूप में। १ [ पन्थिय । त्थ सत्थरमस्थि भएँ पत्थरथले गामे ।। उपाश पोहर पेखिऊण जइ वससि ता वसतु ।। | -साहित्यदर्पण, पृष्ठ १७६ । ] २ [ अत्ता एथ णिमजइ एथ अहं दिसनं पलोएहि ।। मा पहिअ रत्तिनंधिश्च सज्जाए मह मिज्जहिसि ।। -वही, पृष्ठ २० ।]