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रस-मीमांसा

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रस मीमांसा तुझसे =तु जो अनुभवी और विद्वान् नहीं है। व्यंग्यार्थ–मेरा उपदेश तेरे लिये हितकर है।) . असंलक्ष्यक्रमव्यंग्य ध्वनि पदगत-बह लावण्य! वह कांति ! वह रूप ! और वह वचनावली ! उस समय तो ये सव अमृतवर्षी थे परंतु अब अत्यंत संतापकारी हो गए हैं । ( वह के द्वारा पहले तो असाधारण और अवर्णनीय सौंदर्य की व्यंजना होती है ( वस्तु ) और फिर विप्रलंभ श्रृंगार ( रस ) की । इसलिये असंलक्ष्यक्रम व्यंग्य है। ‘बह’ पद् यद्यपि कई बार प्रयुक्त हुआ है पर वह एक ही पद हैं अतः पद्गत ध्वनि है )। | शब्दशक्तिमूलक वस्तुध्वनि पदगत–“एकांतवास की आज्ञा देने में तत्पर और भुक्तिमुक्ति देनेवाला सद्गम ( सच्छास्त्र अथवा अच्छे पुरुप का आना ) किसे आनंदित नहीं करता ? यहाँ व्यंग्य वस्तु पुरुष-समागम है। | प्रश्न-इसमें उपमानोपमेय भाव क्यों नहीं है जैसा कि अलंकार द्वारा व्यंग्य वस्तु के उदाहरणों में हुआ करता है ? | समाधान क्योंकि यह विवक्षित ( इच्छित ) नहीं है। शब्द-शक्तिमूलक पदगत अलंकार-ध्वनि-अलौकिक बुद्धि से युक्त संपूर्ण पृथ्वी को धारण करनेवाला यह कोई पुरुषोत्तम राजा १ [लाबण्यं तदसौ कान्तिस्तद्रूपं स वचःक्रमः । तदा सुधास्पदमभूदधुनों तु ज्वरो महान् ।। -वही, पृष्ठ १८४ |] । २ [ भुक्तिमुक्तिकदेकान्तसमादेशनतत्परः ।। | कत्य नानन्दनिष्यन्दं विदधाति-सदागमः ।।। —वही, पृष्ठ १८५]]