पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/४१०

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शब्द-शक्तिं सुशोभित है' ।' यहाँ सादृश्य विवक्षित है इसलिये उपमा व्यंग्य हैं। अर्थशक्तिमूलक स्वत:संभवी वस्तु से वस्तु ध्वनि—“तूने अभी सायंकाल स्नान किया है। शरीर में शीतल चंदन का लेप किया है, सूर्य अस्त हो गया है ( धूप भी नहीं है, और आराम से धीरे धीरे तृ, यहाँ आई है; तेरी सुकुमारता अद्भुत है जो इस समय तू ऐसी क्लांत हो गई है। तूने परपुरुप के साथ संभोग किया है—यह वस्तु व्यंग्य है। यहाँ अत्यंत व्यंजक शब्द ‘अधुना' ( इस समय ) है इसलिये यह पदगत है। | असंलक्ष्यक्रमव्यंग्य ध्वनि में प्रकृतिगत, प्रत्ययगत, उपसर्गगत ध्वनि-( उदाहरणों के लिए देखिये—साहित्यदर्पण पृष्ठ १९१, १९२, १९३ । १ [अनन्यसाधारधीभृताखिलवसुन्धरः । राजते कोऽपि जगति स राजा पुरुषोत्तमः ॥—वहीं, पृष्ठ १८६ । ] २ [ सायं स्नानपासितं मलयजेनाङ्ग समालेपितं यातोऽस्ताचलमौलिम्वरमणिवितधमत्रागतिः । अाश्चर्यं तवसौकुमार्यमभितलान्तासि येनाधुना नेत्रद्वन्द्वममीलनव्यतिकरं शक्नोति ते नासितुम् ॥-वहीं ।। ३ [ प्रकृतिगत चलापाङ्गां दृष्टि स्पृशसि बहुशो वेपथुमतीं | रहस्याख्यायीव स्वनसि मृदु कान्तिकचरः । करं व्याधुन्वन्त्याः पिबसि रतिसर्वत्वमधुर वयं तवान्वेषान्मधुकरहतास्त्वं खलु कृती | प्रत्ययात मुहरङ्गलिसंवृताधरौटं इतिवेधाक्षरविक्लवाभिरामम् । मुखमंसविवति पक्ष्मलाक्ष्याः कथमब्युनमितं न चुम्बितं तु ।। उपसर्गगत ‘न्यक्कारोह्ययमेव', देखिए पृष्ठ ३६७ की पादटिप्पणी सं० ३ ।]