पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/४१६

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शब्द-शक्ति हुँचती। क्योंकि किसी ने भी इसे अस्वीकार नहीं किया है कि रस का आस्वाद विभाव, अनुभाव आदि के अनंतर होता है। यही हेतु है कि विभाव, अनुभव रसनिष्पत्ति के कारण कहे गए हैं। लक्षणा व्यंग्यार्थं की प्रतीति में असमर्थ 'गावें पानी में बसा है। उदाहरण में लक्षणा केवल ‘पानी के तट पर अर्थ का बोध कराती है। क्योंकि दूसरे प्रकार से पानी में पद का ठीक ठीक अर्थ-बोध नहीं हो सकता। किंतु शीतत्व और आर्द्रत्व व्यंग्य अर्थों का द्योतन वह नहीं करती। यही क्यों व्यंग्यार्थ सदा लक्षणा पर ही आश्रित नहीं होता। उसकी आवश्यकता तो वहाँ पड़ती हैं जहाँ अन्वयार्थ में बाध उपस्थित होता है। यदि यह तर्क किया जाय कि लक्षणा में प्रयोजन भी लक्ष्य है तो ‘पानी के तट पर' अर्थं वाच्यार्थ होगा और बाधित वाच्यार्थी होगा। किंतु न तो ‘पानी के तट पर पानी में' का मुख्यार्थ ही है और न इसमें अर्थ का वाध ही है। यदि वह गाँव पानी में बसा हैमें शीतत्व और आर्द्रत्व को लक्ष्यार्थ माना जाय तो प्रयोजन क्या होगा। यदि कोई प्रयोजन हो तो वह भी लक्ष्य होगा । इस प्रकार ‘अनवस्था दोष हो जायगा । | इतने पर भी कोई यह बात उठा सकता है कि लक्षणा प्रयोजन के सहित अर्थ का बोध कराती हैं। किंतु अर्थ और प्रयोजन भिन्न भिन्न हैं इसलिये वे एक ही समय और एक ही साथ लक्षित नहीं हो सकते । एक का बोध दूसरे के अनंतर ही होगा । | १ [ उपपाद्योपपादकप्रवाहोः न वाधः–जन तर्क करते करते कुछ परिणाम न निकले और तर्क भी समाप्त न हो जैसे कारण का कारण और उसका भी कारण, फिर उसका कारण इस प्रकार का तर्क और अन्वेषण जिसका कुछ और छोर न हो—हिंदी शब्दसागर, पृष्ठ ९८ । ]