पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/४२४

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शब्द-शक्ति स्थान में अकेले जाना और इस संभावना से जाना कि “शरीर में खरोंट लग जायगी ऐसे अनुमान के लिये पुष्ट तर्क नहीं हैं। यह संभव है कि वह वहाँ बड़े पवित्र विचार से अपने पति की सेवा करने जा रही हो । | व्यंग्य अलंकार भी अनुमेय नहीं है। यह उदाहरण लीजिए“जलक्रीड़ा के समय चंचल हथेलियों से बार बार राधा के मुख को ढाँककर खोलकर चक्रवाक के जोड़े का संयोग और वियोग करने वाले कौतुकी कृष्ण संसार की रक्षा करें। यहाँ व्यंग्य अलंकार रूपक ( मुखचंद्र है ) है । इसको अनुमान से उपलब्ध करने के लिये कोई इस प्रकार अनुमान की प्रक्रिया दिखाएगा मुख चंद्रमा है—प्रतिज्ञा ( मेजर टर्म या प्रपोजीशन ) । क्योंकि जब यह दृश्य रहता है तो चक्रवाक के जोड़े का वियोग और जब यह् दृश्य नहीं रहता है तब उनके संयोग का कारण होता हैहेतु ( मिडिल टर्म या रीजन ) । हेतु अनैकांतिक है। उनके वियोग के लिये चंद्रमा के अतिरिक्त और भी संभाव्य हेतु हो सकते हैं (जैसे, व्याध को देखना )। विचार| यह ध्यान देने योग्य है कि लेखक [ साहित्यदर्पणकार ] ने वस्तु-व्यंजना या अलंकार-व्यंजना के संबंध में जो दोनों ही वस्तुतः किसी तथ्य की व्यंजना होती हैं, अनुमेयत्व को असिद्ध करने के लिये उचित मार्ग का अवलंबन नहीं किया है। वस्तुतः पूर्वोक्त दोनों उदाहरणों में व्यंग्य अर्थ का पता देनेवाली परंपरा है। इनकी परीक्षा की जाय | पहले उदाहरण में साध्य या १ [ जलकेलि तलकरतलमुक्तयुनः पिहित-राधिकाचदनः ।। जगदवतु कोकयुनो विघटनसंघटनकौतुक कृष्णः ॥ –साहित्यदर्पण, पृष्ठ २१६ । ] .