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रस-मीमांसा

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रस-मीमांसा प्रापोजीशन ‘गोदावरी के तट पर घूमना नहीं हैं, प्रत्युत नायिका की इच्छा कि ‘भगतजी गोदावरी के तट पर न घूमें हैं। काव्यपरंपरा से परिचित व्यक्ति के लिये एकांत नदी-तट पर कुंज शब्द का संकेत ही पर्याप्त है। इसके द्वारा वह तुरंत इस बात से अवगत हो जाता है कि कहनेवाली कुलटा या कम से कम परकीया है। और इस अभिप्राय को समझ लेने में पूरी सहायता मिलती हैं। हम प्रतिज्ञा को यों रख सकते हैं नायिका चाहती है कि 'भगतजी तट पर घूमना छोड़ दें। इसे अनुमान चक्र के रूप में यों रख सकते हैं नायिका चाहती है आदि–प्रतिज्ञा ।। क्योंकि वह अपने प्रिय से वहाँ मिलती हैं-( हेतु )। जो अपने पति से मिलना चाहती है वह यह चाहती है कि कोई बाधा न हो—( अलिकेशन )। इसी से वह चाहती है इत्याहिं—( उपसंहार )। ‘वह कुलटा या परकीया है। यह भी अनुमान से जाना जा सकता है। | वह परकीया है—प्रतिज्ञा या साध्य ।। साहित्य में परकीया सहेट में प्रिंय से मिलती हैं यह भी सहेट में मिलना चाहती है-अमिकेशन । | इसलिये वह परकीया या कुलटा है-उपसंहार । यही बात दूसरे उदाहरण के संबंध में भी कहीं जा सकती है। यदि ये वाक्य सीता के मुख से कहलाए जायें तो उक्त व्यंग्य नहीं रह जाता। परंपरा (आप्तोपदेशः) से वक्ता के चरित्र, प्रकरण इत्यादि का पता चलता है जो मुक्तक में अकथित हुआ करते हैं। इस प्रकार इनमें वही मानसिक प्रक्रिया दिखाई देती है जो अनुमान की होती है। उस प्रक्रिया का परिणाम ठीक ठीक