पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/४२६

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शब्द-शक्ति ११३ अनुमान तक पहुँच सकता है कि नहीं यह पृथक् ही विचारणीय प्रश्न हैं। यह वस्तुतः व्यावहारिक अनुमान है चाहे यह सदा सैद्धांतिक शुद्ध अनुभाव न हो। उदाहरण १-‘इस समय एक पत्ती नहीं हिलती है। इससे वायु का अभावातिशय व्यंजित होता है। यह शेषवत् अनुमान का अच्छा उदाहरण होगा। २-'देखो मृग कैसे निद्वंद्व और निश्चेष्ट बैठे हैं। यहाँ निर्जनत्व का अतिशय व्यंजित होता है जो व्यावहारिक अनुमान है। यह विशुद्ध अनुमान नहीं है। क्योंकि यह संभव है कि मृगों ने झाड़ियों में छिपे व्याध को न देखा हो । चाहे व्यावहारिक अनुमान हो चाहे विशुद्ध सैद्धांतिक अनुमान, मानसिक प्रक्रिया दोनों में एक ही प्रकार की हुआ करती है । अनुमान और काव्य की वस्तु-व्यंजना में एक अंतर बहुत स्पष्ट है। वस्तु-व्यंजना में वक्ता की दृष्टि में रहनेवाला अर्थं प्रमुख होता हैं । न्याय की विशुद्ध पद्धति से वह अपनी बात नहीं कहता। दूसरे शब्दों में काव्यगत व्यंजना में वक्ता का विचार ही व्यंग्य हुआ करता है। वस्तु-व्यंजना और अनुमान के असादृश्य का तात्पर्य यों समझना चाहिए कि व्यावहारिक अनुमान से जिस व्यंग्य वस्तु की उपलब्धि होती है। वह सामान्यतया घटित होनेवाली घटना पर आश्रित होती है। दूरारूढ़ संभाव्यताओं का विचार करने वह नहीं जाती। शक्त्युद्भव ध्वनि में भी ब्यंजित सादृश्य तक एक प्रकार के अनुमान से ही हम पहुँचते हैं। वहाँ दूसरे अर्थों के बीच तर्कगत संबंध ही हेतु हुआ करता है। | जो यह कहते हैं कि रस-ज्ञान स्मृति है—उनका कहना भी ठीक नहीं । क्योंकि उनका कथन इस बात पर आश्रित है कि स्मृति की