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रस-मीमांसा

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रस-मीमांसा संचारी निर्वेद, आवेग, दैन्य, श्रम, मद, जड़ता, उग्रता, मोह, विबोध, स्वप्न, अपस्मार, गर्व, मरण, अलसता, अमर्प, निद्रा, अवहित्था, औत्सुक्य, उन्माद, शंका, स्मृति, मति, व्याधि, संत्रास, लज्ञा, हर्ष, असूया, विषाद, धृति, चपलता, ग्लानि, चिंता, वितर्क । | अंगज-भाव ( प्रथम प्रथम प्रेम-विकार के लक्षण दिखाई देना ) । यह वहीं कुमारी है, किंतु इसका मन कुछ और ही दिखाई देता है। हाव-(भृकुटी नेत्रादि के किंचित् या अल्प-विकार से संभोगेच्छा प्रकाश ) । हेला-( भृकुटी नेत्रादि के अधिक विकार से अभिलापा का अधिक स्फुट होना )। लीला-चेप, अलंकार, वचन आदि में प्रियतम का अनुकरण । विलास–प्रिय के दर्शन से गति, स्थिति आदि तथा मुख, नेत्रादि के व्यापारों की विलक्षणता ।। विच्छिन्ति–कांति को बढ़ानेवाली कुछ वैश-रचना । विव्चोक–अति गर्व के कारण अभिलषित वस्तु का भी अनादर प्रकट करना। किलकिंचित् अति प्रिय वस्तु के मिलने पर हर्ष, हास, अकारण रोदन, कुछ त्रास, कुछ क्रोध, कुछ श्रमादि का विचित्र मिश्रण ।। मोट्टायित-प्रियतम की कथा में अनुराग दिखाई पड़ना । कुट्टमित–अंगस्पर्श के समय भीतर हर्ष होने पर भी बाहरी घबराहट प्रकट करना, हाथ पैर हिलाना आदि । । विभ्रम–प्रिय के आगमन या मिलने जाने के हर्षातिरेक से वस्त्र, भूषण आदि का और का और स्थान पर पहनना।