पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/४३९

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[ ख ] काव्यवालो पुस्तक के लिये मनोविज्ञान संबंधी टिप्पणियाँ मन के संघटन के नियम-बृहत् और लघु चक्र; पहले में दूसरा भी अवस्थित रहता है। प्रवृत्तियाँ और जीवनवेग भाव के अंतर्गत हैं । भाव स्थायीभाव के अंतर्गत हैं। भाबी और स्थायीभावों के चक्र के शासन के अंतर्गत केवल संस्कार ही नहीं, विचार भी आते हैं अर्थात् बुद्धि, इंद्रियवेग और मनोवेग । पहला वाह्य के बदले आभ्यंतर प्रेरणा से जगता है। उसकी अधिक व्यवस्थित संघटना होती है और वह अधिक उत्तेजित होता है । लघु चक्र के अंतर्गत बुभुक्षा और काम के जीवनवेग आते हैं। आवश्यकताओं और आकांक्षाओं के वेग भी इसी के अंतर्गत आएगे, जैसे विश्राम और शयन के बेग । ( इंपल्सेज= जीवनबैग । एपिटाइट्स=इंद्रियर्वेग । इमोशंस्= मनोवेग या भाव। सेंटिमेंटस् = स्थायीभाव ।) स्थायीभाव में भाव