पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/४४२

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परिशिष्ट वर्तन की गहनता और द्रुतता की चेतना बनी रहती है। ज्ञानात्मक मार्गों से हमें इन विशेषताओं का पता चल जाता है । क्या रागात्मक स्मृति भी होती है ? हम कह सकते हैं कि किसी निश्चित समय पर हमने हर्प या पीड़ा का अनुभव किया । किंतु हम राग को इतने रपष्ट रूप में स्मरण नहीं कर सकते, जैसे हम घटनाओं और दृश्यों को स्मरण कर सकते हैं । होली का प्रभाव| शेली के संगीत ने जव विश्व को विमुग्ध करना आरंभ किया तो कतिपय कवि इस सिद्धांत पर कार्य कर चले कि हममें और इतर मानवजाति में निश्चय ही महान् अंतर है। उनका सिद्धांत था कि हम दूसरी दुनिया के पक्षी हैं और यथाशक्य गान ही करने के लिये हैं। इसे यों भी कह सकते हैं कि काव्यक्षेत्र अचरज से भरा और भड़कीला पागलखाना हो गया था। अलेक्जेंडर की महत्वाकांक्षा यह थी ‘काव्य का व्यवहार वैसा ही हो जैसे केतु के उदय से सुन्न उजनी का साम्राज्य जगमगा उठता है ।। | बेली, डोबेल, स्मिथ प्रकृत लोक के प्राणी थे, उन्माद लोक के । नहीं । पर उन्होंने उन्माद् को उत्तेजित ही किया। शेली के अनुयायीं जिस उच्च लोक का हमारे अधोलोक के लिये गायन कर रहे थे उसका नाम बेली ने ‘नकुत्रापि ( नो हेअर= कहीं नहीं ) रखा था। बेली का ‘घेस्टस' और ब्राउनिंग का ‘सॉरडेलों' इस ‘नकुत्रापि ( कहीं नहीं ) काव्य के उदाहरण हैं। काव्य-कला के भेद, कल्पना के दो प्रकार (१) नाटकीय कल्पना, (२) प्रगीतात्मक या अंतर्भावात्मक कल्पना। तदनुसार कविं लोग या तो सापेक्ष दृष्टि के होते हैं या निरपेक्ष दृष्टि के । .