पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/४५४

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परिशिष्ट ४४१ उपादान लक्षणा–वाक्यार्थ में, अंग रूप से अन्वित मुख्यार्थं जहाँ अन्य अर्थ का आक्षेप कराता है वहाँ मुख्यार्थ के भी बने रहने के कारण उपादान लक्षणा कहलाती है। In उपादान लक्षणा we must clearly understand what is meant by अंगरूप से अन्वित. The अन्वय is of अर्थ i.e. olbject signified by the word, not of word, e.g. the thing लाल पगड़ी is retained in the thing लाल पगड़ीवाले सिपाहीं. But in the example इस घर से बड़ी अाशा है, though the word is retained in the expression r ate but the thing at has nothing to do with the fact. ( also called, अजहत्त्वार्थावृत्ति ) e.g. श्वेत दौड़ा, भाले घुसते हैं। Examples रूढ़ि में उपादान लक्षणा–काले ने काटा। प्रयोजन में ,, ,, -लाल पगड़ी आई, सब भागे । In the second example the suggested (व्यंग्य) प्रयोजन is आतंकातिशय. | लक्षण-लक्षणा–जहाँ किसी शब्द का मुख्यार्थ अपने स्वरूप का समर्पण करके अन्य या लक्ष्य अर्थ का उपलक्षण मात्र बन जाय वहाँ लक्षण-लक्षणा होती हैं. eg. पंजाब वीर है and गंगा पर घर है (जस्वार्थी वृत्ति) N. B. उपादान में मुख्यार्थ का अन्वय-अंगरूप से–लक्ष्यार्थ | के साथ होता है पर लक्षण-लक्षणा में नहीं .