पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/४७६

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परिशिष्ट संदिग्ध रहती है, या वाच्यार्थं व्यंग्यार्थ की बराबर प्रधानता रहती है, अथवा व्यंग्य अर्थ अस्फुट रहता है, गढ़, अत्यंत अगृढ़ (स्पष्ट) या असुंदर होता है। Examples रसादि का अंगरस–स्मर्यमाण श्रृंगार करुण का अंश । “हा ! यह वह हाथ है जो रशना का आकर्षण करता था, कपोलों का स्पर्श करता था ९tc. (It is to be noted that in all such examples the whole yerse cannot be called a Tकाव्य fo1: there is alrmittedly रस of which अप्रधान ajte forms a part. The author admits this P,202 )* | वाच्यार्थी का उपपादक-हे राजेंद्र ! पृथ्वी और आकाश के मध्य सर्वत्र प्रकाश करता हुआ वैरि-वंश का दावानल रूप यह आपका प्रताप सर्वत्र जग रहा हैं। ( इलेप द्वारा शत्रु में बाँस का आरोप व्यंग्य है पर यह व्यंग्य अलंकार वाच्यार्थ दावानल का साधक है). Similarly if after a suggested similarity, the उपमान is expressly stated, the व्यंग्य loses its importance and becomes a part of t. अस्फुट व्यंग्य-संधि करने में सर्वस्व छिनता है और विग्रह करने में प्राणों का भी निग्रह होता है, अलाउद्दीन के साथ न तो संधि हो सकती है, न विग्रह'.

  • साहित्यदर्पण ( शालग्राम शास्त्री ) ।