पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/५६

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काव्य और सुखप्राप्ति का प्रयास करता रह जाता है और कभी वास्तविक सुख-शांति प्राप्त नहीं करता, इस बात को गोस्वामीजी यो सामने रखते हैं डासत ही गई बीति निसा सब, कबहुँ न नाथ ! नींद भरि सोयो । भविष्य का अज्ञान अत्यंत अद्भुत और रहस्यमय है जिसके कारण प्राणी आनेवाली विपत्ति की कुछ भी भावना न करके अपनी दशा में मग्न रहता है। इस बात को गोस्वामीजी ने ‘चरै हरित तृन बलिपसु इस चित्र द्वारा व्यक्त किया है। अँगरेज कवि पोप ने भी भविष्य के अज्ञान का यही मार्मिक चित्र लिया है, यद्यपि उसने इस अज्ञान को ईश्वर का बड़ा भारी अनुग्रह कहा है उस बलिपशु को देख अनि जिसका तू, रे नर ! अपने ईंग में रक्त बहाएगा वेदी पर । होता उसको ज्ञान कहीं तेरा है जैसा, क्रीडा करता कभी उछलता फिरता ऐसा ? अंतकाल तक इरा हरा चारा चभलाता । इनन हेतु उस उठे हाथ को चाटे जाता। अगिम का अज्ञान ईश का परम अनुग्रह || बातचीत में भी जब किसी को अपने कथन द्वारा कोई * The lamb thy riot dooms to bleed today, Had he thy reason, would he skip and play ? Pleased to the last he crops the flow'ry food, And licks the hand just raised to shed his blood, The blindness to the future kindly given. -Essay on Man try for alsed to o the f