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रस-मीमांसा

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५.८ रस-मीमांसा तो काव्य के संबंध में दूर ही से इस शब्द को नमस्कार करना चाहिए। काव्य-समीक्षा में फरासीसियों की प्रधानता के कारण इस शब्द को इसी अर्थ में ग्रहण करने से योरप में काव्य-दृष्टि इधर कितनी संकुचित हो गई, इसका निरूपण हम किसी अन्य प्रबंध में करेंगे । आनंद की साधनावस्था या प्रयत्न-पक्ष को लेकर चलनेवाले काव्यों के उदाहरण हैं-रामायण, महाभारत, रघुवंश, शिशुपालवध, किरातार्जुनीय । हिंदी में रामचरितमानस, पदमावत ( उत्तरार्धं ), हमीररासो, पृथ्वीराजरासो, छत्रप्रकाश इत्यादि प्रबंधकाव्य; भूषण आदि कवियों के वीररसात्मक मुक्तक तथा आल्हा आदि प्रचलित वीरगाथात्मक गीत । उर्दू के वीररसात्मक सरसियें । योरपीय भाषाओं में इलियड़, डेसी, पैराड्राइज लास्ट, रिवोल्ट अॉफ् इसलाम इत्यादि प्रबंधकाव्य तथा पुराने बैलड ( Ballads )। आनंद की सिद्धावस्था या उपभोग-पक्ष को लेकर चलनेवाले काव्यों के उदाहरण हैं—आर्यासप्तशती, गाथा-सप्तशती, अमरुशतक, गीतगोविंद तथा श्रृंगार के फुटकल पद्य । हिंदी में सूरसागर, कृष्णभक्त कवियों की पदावली, बिहारी-सतसई. रीतिकाल के कवियों के फुटकल श्रृंगारी पद्य, रास-पंचाध्यायी ऐसे वर्णनात्मक काव्य तथा आजकल की अधिकांश छायावादी कविताएँ । फारसी उर्दू के शेर और गजलें । अँगरेजी की लीरिक कविताएँ (yrics ) तथा कई प्रकार की वर्णनात्मक कविताएँ । आनंद की साधनावस्था लोक में फैली दुःख की छाया को हटाने में ब्रह्म की आनंदकला जो शक्तिमय रूप धारण करती है उसकी भीषणता में भी