पृष्ठ:रस मीमांसा.pdf/९८

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काष्य के विभाग मन नहीं चिपका करता। प्रेम के रूप में राग का आविर्भाव माधुर्य पाकर ही होता है। पर इस माधुर्य की अनुभूति व्यक्तिगत होती है। दीप्ति का स्वीकार तो बहुत से आदमी एक साथ करते हैं ; पर किसी व्यक्ति या वस्तु में माधुर्यं दुस पाँच आदमियों में एक या दो ही आदमी देखेंगे। लैला में मजनूं की ही आँख ने माधुर्य देखा था। सांनिध्य और संपर्क की प्रबल प्रवृत्ति जगानेवाली दशा, जिसे आसक्ति कहते हैं, माधुर्य-भावना के संचार से ही प्राप्त होती हैं । भधारा के भीतर भीतर चलनेवाली जो भावधारा है मनुष्य के हृदय को द्रवीभूत करके उसमें मिलानेवाली भावना माधुयें की है। ‘कविता क्या हैं' नामक प्रबंध में काव्य को हमने भावयोग कहा है। इस भावयोग की चरम साधना से हृदय को जो मुक्तावस्था प्राप्त होती है वह इसी माधुर्य की अनुभूति के सहारे । भेद में अभेद की रसात्मक प्रतीति इसी माधुर्यं का स्वाद है जिसे हमारे यहाँ के भक्तों ने भगवान् का प्रसाद बताया है-ऐसा प्रसाद जिससे आत्मा का पोषण होता है।

  • देखिए "विचार-वीथी। १[ देखिए ऊपर पृष्ठ ६ ]