पृष्ठ:रस साहित्य और समीक्षायें.djvu/११२

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खड़ी बोली और उसका पद्य] ११३ [ 'हरिऔध' कि थल के स्थान पर स्थल और पानी के स्थान पर पानीय लिखने का ही आग्रह किया जावे । मेरे 'प्रिय-प्रवास' ग्रंथ का बहुत अनुकरण हुअा है, उसकी विशेषताओं का ध्यान करके उसके संस्कृत छन्दों और शब्दों के प्रयोग पर अधिक दृष्टि दी गयी है । ऐसे कुछ ग्रंथ छप गये हैं और कुछ छपने के लिये प्रस्तुत हैं । मैं उत्साही और प्रतिभाशाली नवयुवकों का साहित्य-क्षेत्र में सादर अभिनन्दन करता हूँ और उनके वर्धोन्मुख प्रयत्नों की सहस मुख से प्रशंसा । तथापि यह निवेदन करने के लिए भी विवश हूँ कि अन्धाधुन्ध अनुकरण अच्छा नहीं। प्रियप्रवास लिखकर उच्च कोटि की हिन्दी और अन्त्यानुप्रास-रहित पद्य का श्रादर्श उपस्थित करने की मैंने चेष्टा की है। मैं अपने उद्देश्यों में सफल हुअा हूँ या नहीं, इसको समय बतलावेगा। किन्तु उसका पथ कण्टकाकीर्ण और विषम है । जो प्रतिभाशाली और साहसी युवक उस पथ को ग्रहण करना चाहते हैं, ग्रहण करें, मुझको हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं। किन्तु मेरा सविनय निवेदन यही है कि सरल हिन्दी लिखने का ही प्रयत्न किया जावे; क्योंकि सर्वसाधारण का उपकार इसी प्रकार की हिन्दी से होने की आशा है । कोई-कोई सजन कभी-कभी मुझ पर यह आक्षेप भी करते हैं कि मेरा कोई निश्चित मार्ग अथवा कोई नियमित शैली नहीं। कभी ब्रज- की कविता करता हूँ, तो कभी प्रियप्रवास की भाषा लिखने लगता हूँ, और कभी बोलचाल की ओर ढल जाता हूँ, और इस प्रकार घड़ी-घड़ी रंग बदलता रहता हूँ। किन्तु, यह सत्य नहीं है । मैं अपने विचारानुसार प्रत्येक प्रकार की हिन्दी का उदाहरण उपस्थित कर देना चाहता हूँ। परन्तु प्यार सरल हिन्दी ही को करता हूँ और उसी में कविता करना उपकारक और उत्तम समझता हूँ। मैं यहाँ अपनी प्रत्येक प्रकार की हिन्दी कविता का एक-एक उदाहरण उपस्थित करता हूँ। देश-कालानुसार दूसरी और तीसरी शैली ही अधिक उपयोगिनी है; अतएव मैं इन्हीं दोनों शैलियों में खड़ी बोली की कविता करने का विशेष पक्षपाती हूँ और