पृष्ठ:रस साहित्य और समीक्षायें.djvu/११५

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खड़ी बोली और उसका पद्य] ११६ [ 'हरिऔध' मनोहर और सौरभमय सुमन मिलेंगे जिनसे हिन्दी-संसार सौरभित हो जायेगा । यह कहते हृदय व्यथित होता है कि संस्कृत के विद्वानों और लक्ष्मी के लालों की उचित दृष्टि अब तक इधर नहीं हुई; तथापि यह निश्चित है कि उद्योग गगन-नवराग-रंजित होगा और उसमें सफलता की सुनहली किरणे आलोक विकीर्ण करती दृष्टिगोचर होंगी। आजकल खड़ी बोली कविता-संसार में एक प्रवृत्ति विशेष रूप से जागृत हुई है। हमारे युवक-मंडल का ध्यान इन दिनों रहस्यवाद अथवा छायावाद की अोर विशेष आकृष्ट हुअा है । वे इस विषय की कविताएँ भी इस समय अधिकता से कर रहे हैं । यह विषय नवीन नहीं, प्राचीन है। हिन्दी भाषा में सुन्दर से सुन्दर कविताएँ रहस्यवाद की मौजूद हैं। खड़ी बोली में इस प्रकार की कविता करने का उद्योग आदरणीय और अभिनन्दनीय है । किन्तु, उसका अबाध और उछ खल प्रवाह वांछनीय नहीं । खड़ी बोली के कविता-लेखकों पर यह आक्षेप किया जाता है कि उनमें अधिकांश ऐसे हैं जिनमें न तो प्रतिभा है, न छन्दज्ञान, न मार्मिकता, न सहृदयता, न सुन्दर शब्द-विन्यास की शक्ति, न भावप्रकाशन की यथोचित क्षमता । न उनकी कविताओं में सरसता होती है, न मधुरता और न प्रसादगुण और न वाच्यार्थ की स्पष्टता, फिर भी उनकी लेखनी असंकुचित रूप से चलती है और काव्य-संसार को कलुषित कर रही है। यह कथन अधिकांश युक्तिसंगत नहीं; किन्तु सर्वथा निर्मूल भी नहीं है। रहस्यवाद की अाधुनिक अनेक कविताओं ने इन आक्षेपों को और प्रश्रय दिया है । इसकी मुझको व्यथा है, अतएव में समस्त खड़ी बोली के कविता-लेखकों को साधारणतया और रहस्यवाद के कवियों को विशेषतया इस विषय में सावधान करता हूँ। श्रीमान् बाबू जयशंकर प्रसाद काशी- निवासी की रहस्यवाद' की कविताएँ सुन्दर होती थीं। खड़ी बोली में इस प्रकार की कवितत्रों के आप प्रथम लेखक थे । प्रियवर पं० सुमित्रानन्दन पन्त, प्रियवर गिरीश, श्रीमान् महतो, श्रीमान् गुलाब, श्रीमान् निर्मल और