पृष्ठ:रस साहित्य और समीक्षायें.djvu/१२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

खड़ी बोली और उसका पद्य] १२१ [ 'हरिऔध' साहित्यांगण में पद-संचालन सीखा है और हिन्दी सुन्दरी उन्हीं के सुहास से सौभाग्यवती है। अतएव यदि हम उनके उपकारों और महत्व को न समझे, तो उनकी कुत्सा करके लांछित भी न बनें। बिना उनकी अयोग्यता प्रगट किये भी हम योग्य और बिना किसी माननीय की अव- मानना किये भी हम मान्य हो सकते हैं। इसी प्रकार महान हृदया ब्रजभाषा की निन्दा करना भी उचित नहीं। आप की खड़ी बोली सर्वाङ्ग सुन्दरी हो, अनेक भूषण-आभूषिता हो, उन्नति और प्रगतिशीला हो तो हो, आप उसे ऐसा ही समझे, पर ब्रजभाषा को भी पूजनीया समझे। ब्रजभाषा देवी के समान हमारी आराध्या है। आप उसकी आराधना अवश्य करें, वह आपकी कामना-वेलि को कुसुमित और पल्लवित करेगी, और आपको वे रत्न प्रदान करेगी, जिसके द्वारा आपकी खड़ी बोली का साहित्य जगमगा उठेगा ।*

  • परिशिष्ट