पृष्ठ:रस साहित्य और समीक्षायें.djvu/१२५

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छायावाद ] १२६ [ 'हरिऔध' अकल्पनीय एवं मन, बुद्धि-चित्त से परे है, परन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि हम उसके विषय में कुछ सोच-विचार ही नहीं सकते । उसके अपरिमित और अनन्त गुणों को हम न कह सके, यह दूसरी बात है, किन्तु उसके विषय में हम कुछ कह ही नहीं सकते ऐसा नहीं कहा जा सकता । संसार-समुद्र अब तक बिना छाना हुआ पड़ा है। उसके अनन्त रत्न अब तक अज्ञातावस्था में हैं। परन्तु फिर भी मनीषियों ने उसकी अनेक विभूतियों का ज्ञान प्राप्त किया है। जिससे एक अोर मनुष्यों को सांसारिक और आध्यात्मिक कई शक्तियाँ प्राप्त हुई और दूसरी ओर संसार के तत्वों का विशेष ज्ञान प्राप्त करने की जिज्ञासा और जाग्रत् हो गयी। उस परम तत्व के विषय में भी यही बात कही जा सकती है। मेरे कथन का अभिप्राय यह है कि छायावाद शब्द की व्याख्या यदि कथित रूप में ग्रहण की जाय तो उसके नाम की सार्थकता में व्याघात उपस्थित न होग। मेरी इन बातों को सुन कर कहा जा सकता है कि यह तो छायावाद को रूपान्तर से रहस्यवाद का पर्यायवाची शब्द बमाना है। फिर रहस्यवाद' शब्द ही क्यों न ग्रहण कर लिया जाय, छायावाद' शब्द की क्लिष्ट कल्पना क्यों की जाय ? ईश्वर-सम्बन्धी विषयों के लिए यह कथन ठीक है। परन्तु सांसारिक अनेक विषय और तत्व ऐसे हैं कि छायावाद की कविता में जिनका वर्णन और निरूपण होता है। उन वर्णनों और निरूपणों को रहस्यवाद की रचना नहीं कहा जा सकता । मैं समझता हूँ, इस प्रकार की कविताओं और वर्णनों के समावेश के लिए भी छायावाद नाम की कल्पना की गयी है । दूसरी बात यह है कि 'छायावाद' कहने से आजकल जिस प्रकार की कविता का बोध होता है वह बोध ही छायावाद का अर्थ क्यों न मान लिया जाय ? मेरा विचार यह है कि ऐसा मान लेने में कोई आपत्ति नहीं । अनेक रूढ़ि शब्दों की उत्पत्ति इसी प्रकार हुई है। आइये, एक दूसरे मार्ग से इस पर और विचार करें। . ..