पृष्ठ:रस साहित्य और समीक्षायें.djvu/१५९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कबीर साहब ] ['हरिऔध' मेरा विचार है कि कबीर साहब की रचनाएँ नामदेव के प्रभाव से अधिक प्रभावित हैं । फिर यह कहना कि सिद्धों के साथ कबीर की शृंखला मिलाना आसान नहीं, कहाँ तक संगत है। गुरु गोरखनाथ के मानस के साथ अपने मानस को सम्बन्धित कर कबीर साहब उनकी महत्ता किस प्रकार स्वीकार करते हैं, उसको उनका यह कथन प्रकट करता है- गोरख भरथरि गोपी चंदा। ता मनसों मिलि-करैं अनंदा । अकल निरंजन सकल सरीरा । तामन सों मिलि रहा कबीरा वास्तव बात यह है कि कबीर साहब के लगभग समस्त सिद्धांत और विचार वैष्णव धर्म और महात्मा गोरखनाथ के ज्ञान-मार्ग और योग मार्ग अथच उनकी परम्परा के महात्माओं की अनुभूतियों पर ही अकधितर अवलम्बित हैं और उन सिद्धों के विचारों से भी सम्बन्ध रखते हैं जिनकी चर्चा ऊपर की गयी है। ___ सरांश यह, कि जैसे स्वयं कबीर साहब सामयिकता के अवतार और नवीन धर्म-प्रवर्तन के इच्छुक हैं, वैसे ही उनकी रचनाएँ भी पूर्ववर्ती सिद्ध और महात्माओं के भावों और विचारों से ओत-प्रोत हैं। किन्तु उनमें कुछ व्यक्तिगत विलक्षणताएँ अवश्य थीं जिनका विकास उनकी रचनाओं में भी दृष्टिगत होता है। उनकी इन्हीं विशेषताओं ने उन्हें कुछ लोगों की दृष्टि में निगुण धारा का प्रवर्तक बना रखा है। परन्तु यदि सूक्ष्म दृष्टि और विवेचनात्मक बुद्धि से निरीक्षण किया जाय तो यह बात स्पष्ट हो जाती है कि जिन सिद्धान्तों के कारण उनके सिर पर सन्तमत के प्रवर्तक होने का सेहरा बाँधा जाता है ये सिद्धान्त पराम्प- रागत और प्राचीनतम ही हैं। हाँ, उनको जनता के सामने उपस्थित करने में उन्होंने कुछ चमत्कार अवश्य दिखलाया। कबीर साहब के