पृष्ठ:रस साहित्य और समीक्षायें.djvu/१८६

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गोस्वामी तुलसीदास गोस्वामी तुलसीदासजी की काव्य-कला अमृतमयी है। उससे वह संजीवनी धारा निकली जिसने साहित्य के प्रत्येक अङ्ग को ही नवजीवन नहीं प्रदान किया, वरन् मृतप्राय हिन्दू समाज के प्रत्येक अङ्ग को वह जीवन-शक्ति दी जिससे वह बड़े संकट-काल में जीवित रह सकी इसीलिए वे.हिन्दी संसार के सुधाधर हैं। गोस्वामीजी की दृष्टि इतनी प्रखर थी और सामयिकता की नाड़ी उन्होंने इस मार्मिकता से टटोली कि उनकी रचनाएँ आज भी रुग्ण मानसों के लिए रसायन का काम दे रही हैं। यदि केवल अपने अलौकिक ग्रन्थ रामचरितमानस का ही उन्होंने निर्माण किया होता तो भी उनकी वह कीर्ति अक्षुण्ण रहती जो आज निर्मल कौमुदी समान भारत-वसुन्धरा में विस्तृत है। किन्तु उनके और भी कई ग्रन्थ ऐसे हैं जिससे उनकी कीर्ति-कौमुदी और अधिक उज्ज्वल हो गयी है और इसीलिए वे कौमुदीश हैं । ब्रजभाषा और अवधी दोनों पर उनका समान अधिकार देखा जाता है। जैसी ही अपूर्व रचना वे ब्रजभाषा में करते हैं वैसी ही अवधी में । रामचरित