पृष्ठ:रस साहित्य और समीक्षायें.djvu/२०८

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गोस्वामी तुलसीदास ] २०६ . [ 'हरिऔधर निर्णय स्थिर करें तो वे एशिया के तीन या चार महान लेखकों में परिगणित होंगे।"* डाक्टर जी० ए० ग्रियर्सन का यह कथन है:- "भारतवर्ष के इतिहास में तुलसीदास का बहुत अधिक महत्व है। उनके काव्य की साहित्यिक उत्कृष्टता की ओर न ध्यान दें तो भी भागलपुर से लेकर पंजाब तक और हिमालय से लेकर नर्मदा तक -समस्त श्रेणियों के लोगों का उन्हें श्रादरपूर्वक ग्रहण रखना ध्यान देने योग्य बात है। तीन सौ से भी अधिक वर्षों से उनके काव्य का हिन्द जनता की बोलचाल तथा उसके चरित्र और जीवन से सम्बन्ध है। वह उनकी कृति को केवल उसके काव्यगत सौन्दर्य के लिए ही नहीं चाहती है, उसे श्रद्धा की दृष्टि से ही नहीं देखती है, उसे धार्मिक ग्रंथ के रूप में पूज्य समझती है। दस करोड़ जनता के लिए वह बाइबिल (Bible) के समान है और वह उसे उतना ही ईश्वरप्रेरित समझती है जितना अंग्रेजी पादरी बाइबिल को समझता है । पंडित लोग भले ही वेदों की चर्चा करें और उनमें से थोड़े से लोग उनका अध्ययन भी करें, भले ही कुछ लोग पुराणों के प्रति श्रद्धा-भक्ति भी प्रदर्शित करें किन्तु पठित वा अपठित विशाल जनसमूह तो तुलसी-कृत रामायण ही से अपने आचार-धर्म की शिक्षा ग्रहण करता है। हिन्दुस्थान के लिए यह ge of a prophet by his fruits and I give much less than usual estimate when I say that fully ninty millions of people have heard the theories of moral and religious conduct upon his writings. If we take the influence exercised by him at present time as our test, he is one of the three or four great writers of Asia. " J. R. A. S, July 1930 P. 455.