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कवि ]
[ 'हरिऔध'
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होता है, वही कवि है" कार्लाइल का वचन है---"कवि और भविष्यवक्ता एक ही प्रकार का मंगल समाचार सुनाते हैं। जो कवि है वही वीर है। सत्य और काव्य दोनों एक वस्तु हैं। काव्य की जीवन-धारा सत्य है। जो कवि है, वही सच्चा शिक्षक है"। टेनिसन कहता है--"सिर पर अनेक ताराओं का मुकुट धारण किये सोने के देश में कवि ने जन्म धारण किया था। घृणा की घृणा, उपेक्षा की उपेक्षा और प्रेम का प्रेम, यही उसको भेंट में मिला था। उसकी दृष्टि जीवन और मरण के बीच से, भले और बुरे के भीतर से होकर दूर तक देखती है।" जो कवि नाम के अधिकारी हैं उनको इन पंक्तियों का अवतार होना चाहिये, अन्यथा कवि कहलाना परमात्मा के पुनीत नाम का अपमान करना है।

कवि-कर्म

कवि-कर्म के विषय में सूत्ररूप से ऊपर कुछ कहा गया है, उसकी व्याख्या आवश्यक है। कविता और काव्य ही कवि-कर्म है। सेक्सपियर का कथन है---'कवि की दृष्टि स्वर्ग से पृथ्वी और पृथ्वी से स्वर्ग तक आती जाती रहती है। उसकी कल्पना अज्ञात को मूर्तिमान् कर देती और लेखनी उस पर रंग चढ़ाकर उसे मर्त्यलोक का-सा नाम-धाम दे डालती है। अरस्तू का कथन है---"साधारणतः सब प्रकार कलित कलाओं की भाँति काव्य का भी स्वाभाविक गुण प्रकृति का अनुकरण करना ही है। प्रकृति का अर्थ सृष्टिपदार्थमयी वाह्य प्रकृति नहीं है, वरन् मेरा अभिप्राय विश्व की सृष्टिक्षमशक्ति और उसमें छिपे हुए ध्रुव सत्य से है। काव्य इतिहास की अपेक्षा महत् और दार्शनिक विचार से पूर्ण होता है। वह विश्वव्यापी मूल पदार्थ की अभिव्यक्ति है।" वर्ड्सवर्थ बतलाते हैं--"काव्य एक सत्य है, वह सत्य स्थानीय वा व्यक्तिविशेष के लिये सीमाबद्ध नहीं है, वह सर्वसाधारण की वस्तु है। वह बड़ा ही शक्तिशाली है। मनोवृत्ति की गति की भाँति वह भी बिलकुल हृद्गत् बात है। वाह्य प्रमाण के ऊपर