पृष्ठ:रस साहित्य और समीक्षायें.djvu/६६

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हिन्दी भाषा का उद्गम ] ६७ . [ 'हरिऔध' में मागधी भाषा को मूल भाषा अथवा आदि भाषा कहना कहाँ तक युक्तिसंगत है, आप लोग स्वयं इसको सोच सकते हैं। ___ पोलिप्रकाश-कार कहते हैं-"समस्त प्राकृतों में पालि ही सबसे प्राचीन है; यह भी कहा गया है कि प्राकृत संस्कृत की पूर्ववर्ती है। इसलिए सिंहल के पालि वैयाकरणों की पालि के प्राचीनत्व सम्बन्ध में जो धारणा है, उसको अस्वीकार नहीं किया जा सकता।" -(पालिप्रकाश प्रवेशक, पृ० ९५) वास्तव में इसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता; परन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि पालि ही मूल अथवा अादि भाषा है । पालिप्रकाश-कार एक स्थान पर लिखते हैं-“पालि भाषा का दूसरा नाम मागधी है और यह उसका भौगोलिक नाम है-पृष्ठ १३ ।" दूसरे स्थान पर वे कहते हैं—“मूल प्राकृत जब इस प्रकार उत्पन्न हुई, तो उसके अन्यतम भेद पालि की उत्पत्ति का कारण भी यही है, यह लिखना बाहुल्य है-पृष्ठ ४८।" उक्त महोदय का यह वाक्य इस भाव का ब्यंजक हैं कि पालि अथवा मागधी से मूल प्राकृत को प्रधानता है। ऐसी अवस्था में वह आदि और मूल भाषा कैसे हुई ! तात्कालिक कथ्य वेदभाषा के साथ अनार्य भाषा के सम्मिश्रण से जो भाषा उत्पन्न हुई, उसे वे मूल प्राकृत मानते हैं । अतएव मूल प्राकृत भाषा, कथ्य वेद भाषा की अंगजा हुई, अतः वेद-भाषा उसकी भी पूर्ववर्ती हुई, फिर पालि अथवा मागधी मूल भाषा किम्वा आदि भाषा कैसे मानी जा सकती है ! विश्वकोषकार ने वैदिक संस्कृत से आर्ष प्राकृत, पालि और प्राकृत का सम्बन्ध प्रकट करने के लिए शब्दों की एक लम्बी तालिका पृष्ट ४३४ में दी है। उनके देखने से यह विषय और स्पष्ट हो जायगा; अतएव उसके कुछ शब्द यहाँ उठाये जाते हैं । विश्वकोषकार ने पालि-प्रकाश के मूल प्राकृत के स्थान पर प्रार्घ प्राकृत लिखा है- संस्कृत आर्ष प्राकृत पालि प्राकृत अग्निः अग्गि अग्गि अग्गी