पृष्ठ:रहीम-कवितावली.djvu/१०१

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रहीम-कवितावली। परिहास- बिहँसत भौंह चढ़ाए, धनुष मनोज । लावत उर अबलनियाँ, ऐठि उरोज ॥ ८ ॥ दर्शन । साक्षात् दर्शन- बिरहिनि और विदेसिया, भौ एक ठौर। पिप्रमुख तकत तिरिश्रवा, चन्द चकोर ॥ ६६ ॥ चित्र-दर्शन- . पित्र मूरति चित-लरियां, देखत बाल । . वितवत अवधि बसरवा, जपि जपि माल ॥ १० ॥ श्रवण-दर्शन- आयउ मीत बिदेसिश्रा, सुनु सखि तोर । उठिकिन करसि लिगरवा, सुाने सिख मोर ॥ १०१॥ स्वप्न-दर्शन- पीतम मिलेउ सपनवाँ, भौ सुख-खानि । प्रानि जगायसि चेरिश्रा, भइ दुख-दानि ॥ १०२॥ नायक। सुन्दर चतुर धनिकवा, कुल को ऊँच । केलि-कला परबिनेवा, सील समूच ॥ १०३॥- १८-सुकुमार स्त्री। १००-१-चित्र-सारी, २-दिन । १०३-१-नायक, २-प्रवीण चतुर ।