पृष्ठ:रहीम-कवितावली.djvu/१०२

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बरवै नायिका भेद। पति उपपति बैसिकवा, त्रिविध बखानि । विधि सो ब्याह्यो मुरुजन, पति सो जानि ॥ १०४॥ लैकै सुघर पुरुषवा, पित्र के साथ । छपरो एक छतरिश्रा, बरखत 'पाथ ॥ १०५॥ उपपति- झाँकि झरोखे गोरिया, आँखिन जोर । फिरि चितवति चित मितवा, करत निहोर ॥ १०६॥ बैसिक- . जनु अति नील अलकिया, बनसी लाय।। मो मन बार वधुवा, मीन बाय ॥ १०७॥ . चतुर्विध-पति। अनुकूल- करत नही अपरधवा, सपनेहुँ पीच। ___ मान करै को सधवा, रहिमो जीव ॥ १०८ ॥* दक्षिण- सब मिलि करें निहोरवा, हम कह देइ । गुहि-गुहि चम्पक टँडिआ, उचइ सो लेइ ॥ १०६॥ १०७-१-अलक-बाल, २-बंसी-मछली फाँसने का काँटा, ३-फाँस करके । १०८-*-मतिराम के इस दोहे का भाव ठीक ऐमाही है:- सपने हूँ मन भावतो, करत नहीं अपराध । मेरे मन ही में रहा, मान करन की साध ॥ १०-१-बाहुओं में पहिनने का आभूषण ।