पृष्ठ:रहीम-कवितावली.djvu/११४

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रहीम के स्फुट हिन्दी छन्द ।
कवित्त ।

बड़ेन सो जान पहिचान कै रहीम काह जोपै करतार ही न सुख देनहार है । सीत-हर सूरज सों प्रीति कियो पंकज ने,तऊ कंज-बनन को जारत तुषार है। छीरनिधि-बीच धँस्यो संकर के सीस बस्यो,तऊना कलंक नस्यो ससि मैं सदा रहै । बड़े रीझवार हैं,चकोर दरबार हैं,कलानिधि के यार,तऊ चाखत अँगार है ॥ ५ ॥

अति अनियारे मनौ सानदै सुधारे,महा बिष के बिषारे ये करत पर तान हैं । ऐसे अपराधी देख अगम अगाधी यहै साधना जो साधी हरि हिय में अन्हात हैं । बार-बार बोरे याते लाल-लाल डारे भए,तौ हूँ तो रहीम थोरे बिधि ना सकात हैं । घाइक घनेरे,दुखदाइक हैं नेरे,नित नैन-बान तेरे उर बेधि-बेधि जात हैं ॥ ६ ॥

पट चाहै तन मेट चाहत छदन बन,चाहत सुघन जेती सम्पदा सराहबी । तेरोई कहाय कै रहीम कहै दीनबन्धु, आपनी बिपति द्वार जाय काके काहबी । पेट-भरि खायो चाहै उद्यम,बनायो चाहै,कुटुम जिवायो चाहै,काढ़ि गुन लाहबी । जीविका हमारी जो पै औरन के कर डारो,ब्रज में बिहारी तौ तिहारी कहा साहबी ॥ ७ ॥

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