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ऐतिहासिक-जीवन।


चकित भँवर रहि गयो, गमन नहिं करत कमल बन।

अहि फनि मनि नहिं लेत, तेज नहिं बहत पवन घन॥

हंस मानसर तज्यो, चक्क चक्की न मिलै अति।

बहु सुन्दर पद्मिनी, पुरुष न चहैं न करैं रति।

खल भलित सेस कबि गंग भनि आमित तेज रविरथ खस्यो।

खानानखान वैरम सुवन, जि दिन क्रोध करि तँग कस्यो।

ये बड़े ही सच्चे और स्वात्माभिमानी पुरुष थे। दूसरों को छल करके अथवा दुःख पहुँचा करके अपना सुख बनाना इनके सिद्धान्त के प्रतिकूल था। कहा भी है कि --

परि रहिबो मरिबो मलो, सहिबो कठिन कलेस।

वामन ह्वै बलि को छल्यो, मलो दियो उपदेश॥

सभी स्वेच्छाओं को दबाकर चुप रहना अच्छा है; भारी से भारी संकट सहना अच्छा है; और यहाँ तक कि मर जाना भी अच्छा है; लेकिन स्वार्थ के लिए दूसरों को छलना अच्छा नहीं। भगवान् ने बावन अंगुल का शरीर धारण करके ही कम बदनामी का काम नहीं किया था और उसपर भी बलि ऐसे दानी को छला -- कैसा अच्छा उपदेश दिया है। छलना के ऊपर रहीम की कैसी चोखी फटकार है और कैसी भारी आत्मग्लानि प्रकाशित की है।

सत्य-प्रेमी तो ऐसे थे कि जिस समय अकबर के कट्टर शत्रु महाराना प्रताप महासंकट में निस्सहाय होकर स्वजा-