था। लुत्फ़ यह था कि किसी का उपकार करते हुए कोई
कौर-कसर बाक़ी न रह जाय। इसके लिये यशस्वी शिवि
और राजा दधीचि को ही अपना आदर्श मान रक्खा था।
रहीम कहते हैं कि --
रहिमन पर उपकार के, करत न पारौ बीच।
मांस दियो शिव भूपने, दीन्हों हाड़ दधीच॥
धैर्य को तो इन्होंने कभी हाथ से जाने ही न दिया। उन्होंने तो अपना यह सिद्धान्त बना लिया था --
जैसी परै सो सहि रहै, कहि रहीम यह देह।
धरती ही पर परत सब, सीत घाम अरु मेह॥
इन सब बातों के होते हुए भी ये राजनीति के भी पूरे ज्ञाता थे। बादशाहों को किस तरह क़ाबू में किया जाता है, यह भी इन्हें मालूम था। कहते हैं कि --
जो नृप वासर निसि कहै, तो कचपची देखाव।
जो रहीम रहिबो चहै, कहौ उसी को दाँव॥
नीति में तो यह बड़े ही पारंगत थे। इस विषय में जो कुछ इन्हों ने कहा है खूब तौल-नापकर कहा है।
ईश्वर पर इनका पूरा भरोसा और विश्वास था। अपने हर काम को उसीपर छोड़कर करना, इनकी आदत में था। कहते हैं कि --
काम कछू आवै नहीं, मोल न कोई लेइ।
बाजू टूटे बाज को, साहब चारा देह ॥