पृष्ठ:रहीम-कवितावली.djvu/२१

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रहीम का परिचय।


इस विषय में यह भी एक तर्क हो सकता है कि प्रति लिपिकार ने अपनी ओर से ही यह परिवर्तन कर दिया हो। यह बात मानी नहीं जा सकती। कारण, ऐसे स्वा- भाविक परिवर्तन सरलता से नहीं किए जा सकते। यदि उसे परिवर्तन ही करना था तो अन्य तरह से भी कर सकता था।

३ मदनाष्टक -- यह मालिनी छन्द का एक अष्टक है। पुस्तक के अन्त में संग्रहीत है। यह काशी नागरी-प्रचा- रिणी पत्रिका में प्रकाशित भी हो चुका है। इसके प्रत्येक छन्द का अन्तिम चरण एक है जिसमें 'मदन' शब्द का प्रयोग है। मदनाष्टक के नाम से दो और अष्टक भी पाए जाते हैं। उनमें कोई क्रम नहीं। कुछ छन्दों में ही हमारे अष्टक का अन्तिम चरण पाया जाता है। मदन का प्रयोग भी सब छन्दों में नहीं है।

इन तीनों में रहीम का रचा हुआ अष्टक कौन है, इसमें मतभेद है। हमारे अष्टक को कुछ सज्जन समस्या मान कर अन्य कवि का रचा हुआ कहते हैं। हम इस बात के क़ायल नहीं हैं। कारण, दूसरे दोनों अष्टकों से अष्टक की पारिभाषा के अन्दर यही आता है। अष्टक, पंचक इत्यादि की रचना एक नियम से होती है। प्रायः सभी छन्दों का अन्तिम चरण अथवा अर्ध चरण समान होता है। उदाहरण के तौर पर संस्कृत में ऐसे कई अष्टक पाए