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साहित्यिक-जीवन।
( ८ )
हिम रितु रतिधामा सेज लोटौं अकेली ।
उठत विरह ज्वाला क्यों सहौरी सहेली ॥
इति वदति पठानी मदमदांगी विरागी ।
मदन शिरसि भूयः क्या बला आन लागी ॥

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सम्मेलन पत्रिका में प्रकाशित मदनाष्टक ।
( १ )
कलित ललित माला वा जवाहिर जड़ा था।
चपल चखन वाला चान्दनी में खड़ा था ॥
कटि तट बिच मेला पीत सेला नवेला ।
अलि बन अलबेला यार मेरा अकेला ॥
( २ )
छबि चकित छबीली छैलरा की छड़ी थी ।
मणि जटित रसीली माधुरी मुन्दरी थी ॥
अमल कमल ऐसा खूब ते खूब देखा ।
कहि न सकत जैसा श्याम का हस्त देखा ॥
( ३ )
अलक कुटिल कारी देखि दिलदार जुलफैं ।
अलि कलित निहारैं आपने दिलकी कुलफैं ॥
सकल शशि-कलाको रोशनी-हीन पेखौं ।
अहह ब्रजलला को किस तरह फेर पेखौं ॥