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रहीम का परिचय।
बरुनि-बार लेखनि करे, मसि काजर भरि लेइ।
प्रेमाखर लिखि नैन ते, प्रिय बाँचन को देइ॥
रहीम ने एक भविष्यगुप्ता नायिका का बड़ा अच्छा वर्णन किया है। वह नायक के प्रेम-फन्द में सोलहो आने फँस चुकी है और अपने इष्ट-साधन का निश्चय कर चुकी है। वह यह भी जानती है कि ऐसा होजाने पर संभवतः लोग उसे कलंकित अवश्य करेंगे। इसी की वह पेशबन्दी करती है। अपनी सखी से कहती है कि चौथ का चन्द्रमा देखने से लोग कहते हैं कि देखनेवाले को कलंक लगता है। मैं भी इसबार चौथ के चन्द्र को अवश्य देखूँगी। देखूँ उनके साथ मुझे कैसे कलंक लगता है।
हौं लखिहौं री सजनी, चौथि मयंक।
देखौं केहि विधि हरि से, लगै कलंक॥
छोटे-छोटे शब्दों में नायिका के अभिप्राय को रहीम ने किस उत्कृष्टता से वर्णित किया है, विचार कर मन मुग्ध हो जाता है। शब्दों में जैसी सरलता है भाव में वैसी ही चतुरता।
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