पृष्ठ:रहीम-कवितावली.djvu/३९

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रहीम का परिचय।


की सुविधा के लिये हम उन्हें नीचे उद्धृत कर रहे हैं।


जेहि सुमिरत सिधि होय, गणनायक करिवर वदन।

करहु अनुग्रह सोय, बुद्धि-रासि सुभ-गुण-सदन॥

तुलसी
 

बन्दहुँ बिघन विनासन, रिधि-सिधि-ईस।

निर्मल बुद्धि प्रकासन, सिसु ससि सीस॥

रहीम
 

बन्दहुँ पवन कुमार, खल-बन-पावक ज्ञान-घन।

जासु हृदय आगार, बसहिं राम सर-चाप-धर॥

तुलसी
 

ध्यावहुँ विपति विदारन, सुवन-समीर।

खल दानव बन जारन, प्रिय रघुवीर॥

रहीम
 

बन्दौं गुरुपद कंज, कृपा-सिंधु नररूप हरि।

महामोह तम पुंज, जासु वचन रवि-कर-निकर॥

तुलसी
 

पुनि-पुनि बन्दहुँ गुरु के, पद जल जात।

जेहि प्रसाद ते मनके, तिमिर नसात॥

रहीम
 

रहीम ने सूरदासजी के एक पद से कुछ भाव लेकर एक दोहा बनाया है।


असमय मीत काको कौन ?

बधिक माख्यो बानसे मृग, कियो कानन गौन।

तनको शोनित भयो वैरी, खोजि दीन्हों तौन॥

सूर