पृष्ठ:रहीम-कवितावली.djvu/६७

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रहीम-कवितावली।

बसि कुसंग चाहत कुसल, यह रहीम अपसोस ।
महिमा घटी समुद्र की, रावन बसे परोस ॥ १२० ॥

बाँकी चितवनि चित गड़ी, सूधी तौ कछु धीम ।
गरमी ते बढ़ि होत दुख, काढ़ि न कढ़त रहीम ॥ १२१ ॥
बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोइ ।
रहिमन बिगरे दूध के, मथे न माखन होइ ॥ १२२ ॥

विपति भए धन ना रहै, होइ जो लाख करोर ।
नभ-तारे छिपि जात हैं, जिमि रहीम भे भोर ॥ १२३ ॥
बिरह रूप घन तम भयो, अवधि आस उद्यौत ।
ज्यों रहीम भादौं निसा, चमकि जात खद्यौत ॥ १२४ ।।

भजौं तो काको मैं भजौं, तजौं तो काको आन ।
भजन-तजन ते बिलग ह्वै, तेहिं रहीम तू जान ॥ १२५ ॥
भली भई धरते छुट्यो, हँस्यो सीस परि खेत ।
काके काके नवत हम, अपन पेट के हेत ॥ १२६ ॥

भावी ऐसी प्रबल है, लो रहीम यह जानि ।
भावी काहू ना दही, दही एक भगवान ॥ १२७ ॥
भावी या उनमान की, पाण्डव बनहि रहीम ।
यदपि गौरि सुनि बाँझ है, डरु है संभु अजीमे ॥ १२८ ॥

भीति गिरी पाषान की, अररानी वहि ठाम ।
अब रहीम धोखो भयो, को लागै केहि काम ॥ १२६ ॥


१२६-१-शिर से नीचे का भाग।

१२८-१-उन्मान, २-अजेय ।